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क्या है बंगाल चुनाव की मुख्य सीख विपक्षी दलों और सत्तारूढ़ भाजपा को

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क्या है बंगाल चुनाव की मुख्य सीख विपक्षी दलों और सत्तारूढ़ भाजपा को

Key Lesson of Bengal Election: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कल रात खत्म हो गए हैं। इस चुनाव के नतीजों ने सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दलों के लिए एक प्रमुख पाठ छोड़ा है। इन नतीजों ने यह सिद्ध किया है की कैसे एक साधन संपन्न और धनी राजिनीतिक पार्टी को राजनीति के मूल मंत्रो के साथ हराया जा सकता है। कैसे एक महिला नेता ने अकेले ही बहुत मुश्किल चुनाव जीता। कैसे उसने अपने राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे बड़े नेताओँ को हराया।

बंगाल चुनाव के प्रमुख सबक (Key Lesson of Bengal Election) ने दिखाया कि भारतीय मतदाता कितने चतुर हैं। इस चुनाव में भी मतदाता जाति, धर्म और भाषा में बटे हुए थे। लेकिन इस बार मतदान करते समय मतदाता इन समीकरणो से ऊपर उठ कर बंगाल की एक महिला के लिए मतदान किया। बंगाल के चुना नतीजों के कई राजनीतिक पंडितों की गणना को फेल कर दिया। यह तक की चुनाव परिणामों ने भाजपा और विपक्षी दलों को चौंका दिया। इस बार मोदी और शाह पश्चिम बंगाल की नब्ज पढनें में बुरी तरह विफल रहे है।

कैसे ममता ने भाजपा के भारी भरकम चुनाव को बंगाल में हराया 

हालांकि ममता बनर्जी नंदीग्राम में अपने प्रतिद्वंद्वी सुभेंदु अधिकारी से मामूली अंतर से हार गईं। लेकिन ममता बनर्जी ने इतिहास रच दिया और अपने राज्य में भारी जीत हासिल की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी उनकी जीत के सामने घुटने टेक दिए। इस चुनावों में ममता ने मोदी और शाह को कई सबक सिखाए हैं। उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया की अब उनकी  केंद्र की राजनीति बहुत सुरक्षित नहीं है। यहां तक ममता ने केंद्र सरकार को चुनौती दी की 2024 का चुनाव भाजपा के लिए एक कठिन चूनौती ले कर आने वाला है।

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ममता की यह जीत साबित करती हैं कि भारत की संघीय व्यवस्था की नींव इतनी मजबूत है कि प्रांतीय नेता भी राष्ट्रीय नेता को हरा सकते हैं। यह भारतीय लोकतंत्र का एक अद्भुत क्षण है और यह एक वास्तविक मतदाताओं की अपने नेता के लिए मतदान की सच्ची जीत है। ज़मीनी स्तर की राजनीति और लोगों तह पहुँच ममता बनर्जी की सबसे बड़ी ताकत है। उनकी आभा, सादगी, स्वच्छ और मजबूत महिला वली छवि हमेशा उनके चुनाव जीतने में मदद करती है। आज की 5 स्टार राजनीतिक संस्कृति में, वह उन कुछ नेताओं में से एक है जो अभी भी ज़मीनी राजनीति में विश्वास करती हैं। उनके इन गुणों ने (Key Lesson of Bengal Election) विपक्षी दलों को चुनाव जीतने का एक बड़ा पाठ सिखाया है।

ममता ने राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष के मरते हुए उम्मीद को दुबारा जगाया है: Key Lesson of Bengal Election

राजनीतिक विशेषज्ञ पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत का ध्यानपूर्वक विश्लेषण कर रहे हैं। कई लोग मानते हैं कि यह जीत राष्ट्रीय राजनीति में धर्मनिरपेक्ष दलों को एक बार फिर से एकजुट करेगी। ममता राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर सकती हैं। शरद पवार और अन्य विपक्षी नेताओ का ममता को जीत के बाद संदेशों का एक बड़ा अर्थ है। ऐसा लगता है कि बंगाल चुनाव के प्रमुख पाठ (Key Lesson of Bengal Election) को विपक्षी और सत्तारूढ़ दल के कई नेताओं को सीखने की आवश्यकता है। इस चुनाव के नतीजों ने उन लोगों का मह बंद कर दिया जो हमेशा पूछते थे की भारत में नरेंद्र मोदी के खिलाफ कौन है।

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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम साबित करते हैं कि छोटे दल भी चुनाव में भाजपा और नरेंद्र मोदी का मुकाबला कर सकते हैं। अब क्षेत्रीय दलों एनडीए में शामिल हुए बिना भी राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभा सकते है। मुस्लिम मतदाताओँ को भी उनकी एकता की शक्ति का एहसास हो गाय है। उन्होंने ने भी भाजपा के खिलाफ अपने वोटों को मजबूत करने में कड़ी मेहनत की हैं। आपको बता दें कि कुछ मुस्लिम नेताओं ने पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटों को बांटने की कोशिश की लेकिन वे इस बार इसमें असफल रहे। मुस्लिम मतदाताओं ने एक जुटता के साथ बंगाल में ममता के पक्ष में वोट किया। इन सभी कारकों ने ममता को राष्ट्रीय राजनीति में शीर्ष स्थान के नेता के रूप में उभरने में मदद की।

ममता ने बंगाल में मोदी और शाह के गौरव को कैसे हराया

Modi and Shah

इस जीत के साथ, ममता ने मोदी और शाह के गौरव को हरा दिया। हालाँकि वह बंगाल में भाजपा के मजबूत पकड़ को बनाने में विफल रही। पर बंगाल में ममता की इस विशाल जीत ने भाजपा को आश्चर्यचकित कर दिया और मोदी और शाह के जोड़ी को चुनौती दी है। ममता ने भाजपा को अपनी राजनीतिक रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। उन्होंने ने यह सिद्द किया की मोदी के क़द को राष्ट्रीय चुनावों में चुनौती दी जा सकती है। विपक्ष भाजपा के सीबीआई, ईडी, आईटी और चुनाव आयोग के सहयोग के बाद भी चुनाव में हरा सकता है। यहां तक ​​कि उन्होंने ने भाजपा के पार्टी कार्यकर्ताओं को भी उनकी शक्ति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है। Key Lesson of Bengal Election विपक्ष ने लिए एक बड़ी सीख है। 

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आपको बता दें कि भाजपा प्रत्येक चुनाव के लिए एक लंबी रणनीति का पालन करती है। वह चुनाव के 2-3 साल पहले वे हाई सोशल मीडिया पर विपक्षी नेताओं को निशाना बनाना शुरू कर देते हैं। वे उन्हें बदनाम करने लगते हैं और उन्हें डराने के लिए सीबीआई, ईडी और आईटी जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल करते हैं। वह कई विपक्षी नेता को घोटाले और भ्रष्टाचार से बचाने के लिए भाजपा में शामिल होने के लिए मजबूर करते हैं। भाजपा पार्टी नेतृत्व और स्थानीय कैडर प्रमुख विपक्षी नेता से संपर्क करते हैं और उन्हें पैसे और शक्ति के साथ खरीदते हैं। वह विपक्षी दलो के इन सभी मोर्चों पर चुनाव में लड़ातें है। ममता ने इन सभी मोर्चे पर लड़ाई लड़ी और विपक्षी दलों को (Key Lesson of Bengal Election) बंगाल में चुनाव जीत कर एक मुख्य पाठ पढ़ाया है ।

पश्चिम बंगाल में हारने के बाद नरेंद्र मोदी की क्या स्थिति है: Key Lesson of Bengal Election

अब कई सवाल पूछ रहे हैं कि क्या बंगाल चुनाव हारने के बाद नरेंद्र मोदी की छवि में कोई बदलाव आएगा या नहीं। क्या पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद ममता नरेंद्र मोदी और अमित शाह को चुनौती दे सकती हैं? क्या यह हार राज्य चुनाव लड़ने की भाजपा की रणनीति को बदल देगी? क्यों भाजपा आगामी विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के बजाय स्थानीय नेतृत्व पर भरोसा करेंगे? क्या इस बार बंगाल और तमिलनाडु चुनाव हारने के बाद मोदी और शाह का भाजपा पर नियंत्रण कमजोर हो गया है।

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कई लोग मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में हार से नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए कुछ भी नहीं बदलेगा। क्योंकि वे अभी भी केंद्रीय एजेंसियों जैसे सीबीआई, ईडी और आईटी विभाग की सभी शक्ति का समर्थन रखते हैं। वे इन एजेंसियों का प्रयोग न केवल विरोध के खिलाफ कर सकते हैं, बल्कि खतरे को महसूस करने पर अपने सहयोगियों के बीच भी अंक उपयोग कर सकते हैं। वर्तमान केंद्र सरकार में मोदी और शाह ने कमजोर नेताओं और मंत्रियों के अपने इर्द गिर्द रखा हुआ है। वह मोदी और शाह की चमचागिरी कर अपनी राजनीति और शक्त को बनाए हुए है। राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी जैसे नेताओं को पार्टी के निर्णय में बहुत अधिकार नहीं है। Key Lesson of Bengal Election सिर्फ़ विपक्ष के लिए ही  नहीं बल्की के लिए भी एक बड़ी सीख है। 

अगर ममता केंद्र में विपक्ष का चेहरा बन जाती हैं तो राहुल गांधी का क्या होगा: Key Lesson of Bengal Election

Mamta and Rahul Gandhi

बंगाल चुनाव के नतीजों के बार ममता बनर्जी विपक्ष के चेहरे के रूप में उभर सकती हैं जो केंद्र के क्षेत्र में नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकती है। लेकिन राहुल गांधी के राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने तक यह आसान नहीं है। हालाँकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत में कांग्रेस की अहम भूमिका रही है। कांग्रेस पार्टी बंगाल में माँ से नहीं लड़ी और कांग्रेस ने अपने वोटों को TMC में स्थानांतरित भी किया। लेकिन अगर ममता अपने आप को राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष के नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेंगी तो शायद राहुल गांधी और कांग्रेस  इसका विरोध करेंगे। इस बात के लिए ममता को पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन तालमेल का तरीका खोजना होगा। अन्यथा ममता का यह सपना इतना आसान नहीं होगा। 

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कई लोगों का मानना ​​है कि राहुल ममता को भारत में केंद्र की राजनीति में विपक्षी नेताओं के मुख्य चेहरे के रूप में उभरने का समर्थन कर सकते हैं। लेकिन वह इस गठबंधन में एक प्रमुख कड़ी होंगे जो ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व की डोर अपने पास रखेंगे। अब सवाल यह है कि अगर 2024 में मोदी और बीजेपी के खिलाफ विपक्ष जीतता है तो पीएम कौन बनेगा। इस समय किसी के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है। ममता विपक्ष का चेहरा तो बन सकती हैं लेकिन चुनाव से पहले वह पीएम उम्मीदवार नहीं हो सकती हैं।

Key Lesson of Bengal Election विपक्ष के लिए एक सीख है लेकिन विपक्ष में कई नेता अभी भी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं जिसमें शरद पॉवर भी शामिल हैं। इस सबके बीच यह तो तय है की आने वाले  दिनो में भरतिया राजनीति पूरी तरह से बदलने वाली है। अब देखा है की ऊँट किस करवट बैठता है।